क्या उन्हें अपना मान लें हम?
देश के प्रति द्रोह करते,
देश के प्रति द्रोह करते,
द्रोहियों से हैं मिले जो,
रंग रहे हैं हाथ अपने,
निर्दोष जन के रक्त से जो,
क्या उन्हें अपना मान लें हम?
शत्रु के पाकर इशारे,
खेलते खुलकर सदा जो,
यहीं जन्मे यहीं रहकर,
दें युद्ध की धमकी हमें जो,
क्या उन्हें अपना मान लें हम?
रेल की पटरी उड़ाकर,
सैकड़ों की जान ले लें,
बारूदी बिछाकर सुरंगें,
सैनिकों को मार दें जो,
क्या उन्हें अपना मान लें हम?
घाव पर जो नमक छिड़कें,
दें दुश्मनों को शरण जो,
दुष्ट और आतंकियों को,
सजा देते डर रहे जो,
क्या उन्हें अपना मान लें हम?
पैरवी अजमल (कसाब) की करें,
दें भेद सारे शत्रु को जो,
चाहते अफजल (गुरु) को बचाना,
करें सारे कृत्य कुत्सित जो,
क्या उन्हें अपना मान लें हम?
हों अंतुले, अर्जुन, दिग्विजय,
माधुरी, पाटिल या कि शीला,
दुश्मन सभी हैं देश के ये,
सजा इनको दुश्मनों सी चाहिए,
कैसे इन्हें अपना मान लें हम?
मृत्यु निंद्रा में सुलाए जिसने सहस्रों,
उसको भेजते देश से देकर विदा जो,
द्रोह है ये तो खुलासा देश के प्रति,
सुलगती चिंगारियों को हवा मिलने दीजिये,
क्या उन्हें अपना मान लें हम?