शनिवार, 28 जनवरी 2012

Chalo, raah apani banayen

चलो, राह अपनी बनाये

चलो, राह अपनी बनायें,
अंधेरों में चलकर दीपक जलाएं।।

        गिरे खा के ठोकर उनको उठायें,
        भटके हुओं को सुपथ हम दिखाएँ।
        बिछुड़े हुओं को गले से लगायें,
        निराशा के घर में आशा जगाएं।।

नदी को दिए हैं किसने किनारे,
गगन में जड़े हैं किसने सितारे।
नयी एक फिर से दुनिया रचायें,
नए चाँद-सूरज उसमें उगायें।।

        नए हों तराने, नयी हों फिजायें,
        नए गीत फिर से यहाँ गुनगुनाएं।
        नयी हों उमंगें, नयी हों तरंगें,
        खुशियों के झरने फिर से बहायें।।

सोये यहाँ कोई भूखा न प्यासा,
सब हों निरोगी, सबल सब की काया।
मिटें कष्ट सबके, बनें ज्ञान-मण्डित,
व्यसनों से मुक्ति सभी को दिलाएं।।

        रोये न कोई यहाँ दुक्ख पाकर,
        कोई किसी को कभी न सताए।
        बहे प्रेम-गंगा ह्रदय में सभी के,
        नए नित्य नूतन सरसिज खिलाएं।।

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