गुरुवार, 26 जनवरी 2012

Gantantra Parv

गणतंत्र पर्व


ले उदासी औ निराशा,
आ गया गणतंत्र फिर से।
पर्व सांसों में समाये,
हैं सघन कितने कुहासे।।

        रो रहा गण, तंत्र बेबस,
        सबल सबका खून चूसे।
        आसनों पर जम गए हैं,
        भ्रष्ट निर्लज दस्यु जैसे।।

चाहता गण तंत्र बदलो,
नव सृजन के मंत्र बदलो।
दासता के चिन्ह सारे,
अब मिटें मानस पटल से।।

        त्याग के पथ पर बढे थे,
        शीष अपना जो चढाने।
        मातृ भू की अर्चना का,
        मांगिये आशीष उनसे।।

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