शनिवार, 28 जनवरी 2012

Srijan adhure hawa hue

सृजन अधूरे हवा हुए


किसने ठगे सुहाने सपने,
हाय! कली से मसल दिए ।
अंधियारों के गाँव बताओ,
कहाँ-कहाँ पर जले दिए ।।

        सपनों सी अंगड़ाई वाले,
        महल अनूठे खड़े किये ।
        करवट बदली निंदिया टूटी,
        सृजन अधूरे हवा हुए ।।

बिजली की झिलमिल में देखे,
आंसू उनके बिके हुए ।
सब अरमान तड़पते देखे,
मृगछौनों से बिंधे हुए ।।

        ताल-ताल पर नाचें-थिरकें,
        हंसी मुखौटे धरे हुए ।
        भीतर-भीतर सिसक रहे हैं,
        कोलाहल में दबे हुए ।।

किसने इन्हें निचोड़ा इतना,
हाड़-माँस सब अलग किये ।
दिखें घूमते पंजर जैसे,
बचपन में ही वृद्ध हुए ।।

        मौन अमावास आ बैठी है,
        चेहरा अपना ढके हुए ।
        कौन पढ़े उसकी लाचारी,
        छक कर सबने जाम पिए ।।

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