सृजन अधूरे हवा हुए
किसने ठगे सुहाने सपने,
किसने ठगे सुहाने सपने,
हाय! कली से मसल दिए ।
अंधियारों के गाँव बताओ,
कहाँ-कहाँ पर जले दिए ।।
सपनों सी अंगड़ाई वाले,
महल अनूठे खड़े किये ।
करवट बदली निंदिया टूटी,
सृजन अधूरे हवा हुए ।।
बिजली की झिलमिल में देखे,
आंसू उनके बिके हुए ।
सब अरमान तड़पते देखे,
मृगछौनों से बिंधे हुए ।।
ताल-ताल पर नाचें-थिरकें,
हंसी मुखौटे धरे हुए ।
भीतर-भीतर सिसक रहे हैं,
कोलाहल में दबे हुए ।।
किसने इन्हें निचोड़ा इतना,
हाड़-माँस सब अलग किये ।
दिखें घूमते पंजर जैसे,
बचपन में ही वृद्ध हुए ।।
मौन अमावास आ बैठी है,
चेहरा अपना ढके हुए ।
कौन पढ़े उसकी लाचारी,
छक कर सबने जाम पिए ।।
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